पानी ठहर गया है
छू के कुछ लहरें बना दो
शायद किनारे तक जा पाऊं
तेल ख़त्म हो चला है
इससे पहले की काला पड़ जाऊं
एक फूँक में बुझा दो
धूप में खूब सूख, जल चुका
अबकि बरसो, तो बहा ले जाओ
बसंत का इंतज़ार तो ना रहेगा
एक दफा ज़ोर से छेड़ दो
आखिरी तार भी तोड़ दो
बड़ा तनहा है बेचारा
स्याही भी ख़त्म हो चली है
लिखाई धुंधली हो रही
आखिरी दो पन्ने फाड़ देना
Tuesday, September 2, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)