A half-sized room A half-decayed door A half-working shower A half-lit bulb A half-open tap A half-filled bucket A half-broken heart A half-wet full-naked human body
मैंने तो कभी तांम्बे का सिक्का भी न छुआ होगा और तुम सोने की बाली मैं रंग उड़ा बादल बरसो से बंद ताले के पीछे बरसना-वरसना भूल चुका तुम अभी शाम की भीनी धूप में उभरता इन्द्रधनुष
मैं तपती धूप में सड़क पे नंगे पाँव चलता निर्झर न नीर है, न ही झर सकूँ कुछ थोडी-मोड़ी बूँदे बाकी वही तलहटी के कंकड़-पत्थर तुम वर्षा के बाद साफ़-सुथरे आसमान पे पहली पहली पतंग
मैं काली रात में दीवाना झिलमिल तारा उस एक चाँद के प्यार में पागल जिसे पूरा जग चाहता है ये भी न मालूम की जब सवेरे सूरज चाँद को निगल जाएगा तब तारे को अपने नूर का सुरूर भी न नसीब हो पायेगा
मैं भँवरा, ओस की बूँद पे मर मिटा जो पौ फटे फिजा में घुल जायेगी
तुमने भी तो देखा होगा? तनिक ऊंची डाल पर बैठी चिड़िया चोंच भर बादल दबोच कर घोंसले में रख लेना चाहती है क्यूँ, आजकल क्या ख्वाब भी सही-ग़लत होने लगे हैं?
और फ़िर वे कहते हैं सब जायज़ है मोहब्बत और जंग में, पर क्या हम मध्य-वर्गीय लोग अपनी पाँच फुट सात इंच की जिंदगी में मोहब्बत और जंग के अलावा भी कुछ करते हैं?